- 296 साल बाद पांच ग्रहों की पुनर्साक्षी व शतभिषा नक्षत्र में शुरू होंगे महालय श्राद्ध-......पूरे 16 दिन का रहेगा श्राद्ध पक्ष, अमृतसिद्धि, सर्वार्थसिद्धि व रवि योग खास

भोपाल । भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर 10 सितंबर से महालय श्राद्ध का आरंभ होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष में किसी भी तिथि का क्षय नहीं है। पक्षकाल पूरे 16 दिन का रहेगा। विशेष यह है कि महालय में 296 साल बाद विशिष्ट ग्रह व नक्षत्रों का संयोग बन रहा है। साथ ही 16 दिन में दो अमृतसिद्धि, दो सर्वार्थसिद्धि तथा दो बार रवि योग भी रहेगा। पंचांग की इस विशेष स्थिति में पितरों का श्राद्ध करने से घर परिवार में सुख, समृद्धि, वंशवृद्धि, आयु तथा आरोग्य की प्राप्ति होगी। ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया इस बार महालय श्राद्ध शनिवार के दिन पूर्णिमा तिथि, शततारका (शतभिषा) नक्षत्र, धृति योग, वव करण, कुंभ राशि के चंद्रमा की साक्षी में आ रहे हैं। श्राद्ध पूरे सोलह दिन के हैं, इनमें तिथि,वार,योग, नक्षत्र की अनुकूलता के साथ सर्वार्थसिद्धि,अमृतसिद्धि तथा रवियोग का संयोग बन रहा है। पौराणिक एवं शास्त्रीय मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा का भाव अर्पित किया जाना चाहिए, अर्थात श्रद्धा से पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान करना चाहिए। पितृकर्म से पितरों को तृप्ति होने के साथ उनकी पद वृद्धि होती है। अग्रजों अर्थात परिजन को सांसारिक सुख की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। ग्रहों का विशिष्ट संयोग बना रहा पर्व को खास पितृ पर्व को ग्रहों का विशिष्ट संयोग खास बना रहा है। ग्रह गोचर व नक्षत्र मेखला की गणना से देखें तो इस बार पांच ग्रहों का पुनरावृत्ति योग बन रहा है। वहीं कुछ नक्षत्र भी पूर्वानुसार विद्यमान रहेंगे। गणना के अनुसार सन् 1726 में सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र तथा शनि जिन राशियों में थे, सन् 2022 में भी उन्हीं राशियों में रहेंगे। सूर्य सिंह राशि, चंद्रमा कुंभ राशि, बुध कन्या राशि, शुक्र सिंह राशि, शनि मकर राशि में मौजूद रहेंगे। सौ प्रकार के तपों से मुक्त करता है शततारका नक्षत्र मेखला की गणना के अनुसार 27 नक्षत्रों में 11वीं राशि में आने वाले 25वें नक्षत्र को शततारका नक्षत्र कहा जाता है। इस नक्षत्र के देवता वरुण देव हैं। इनकी साक्षी में श्राद्ध का आरंभ होना विशेष फलदायक माना जाता है। धर्मशास्त्रीय मान्यता के अनुसार इस नक्षत्र में किए जाने वाले श्राद्ध से कर्ता को सौ प्रकार के तापों से मुक्ति मिलती है। कब कौन सा संयोग -11 सितंबर : सर्वार्थसिद्धि योग -13 सितंबर : अमृतसिद्धि योग -16 सितंबर : रवियोग -17 सितंबर : रवियोग -17 सितंबर : अमृतसिद्धि योग -25 सितंबर : सर्वार्थ सिद्धि योग

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