- सनातन जिसका न आदि है न अंत

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संजय भंसाली 
chief editor  

जिसको पूर्णत: जानने में सदियों लग जाएंगी और फिर भी बहुत कुछ बचा रह जाएगा । सनातन जो शाश्वत है जिका कोई विपरीत नहीं सनातन को सिर्फ मानने से ही मनुष्य का उद्धार होजाता है , इतना गहरा और ऊंचा है यह सनातन कि न इसकी गहराई कोई मांप सका है न ऊंचाई ।  जो कुछ सत्य है वह सनातन है अर्थात सत्य ही सनातन है और सनातन ही सत्य है झूठ सनातन का विपरीत यानी विलोमार्थी है । सृष्टि तो सनातन का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है । 

जिस भूमि पर सनातन का गहन चिंतन संतो द्वारा उस भूमि पर सनातन का इस्तेमाल निजी सांसारिक लाभ के लिए किया जा रहा है । जैसे व्यापारी धन के लिए व राजनीतिज्ञ सत्ता के लिए गैर धार्मिक तरीकों व रास्तों से धर्म का दुरपयोग कर अधर्म कर रहे हैं । 
सनातन की प्राथमिकताओं में सत्य-प्रेम-दया का स्थान है , जिसे बिना सनातन शब्द का मतलब ही समझ में नहीं आएगा जहां सत्य नहीं वहां न धर्म न शिक्षा न व्यवाहर और जहां सत्य नहीं उसका विपरीत निश्चित ही एक झूठ होगा । जो अपने आप में सबसे बड़ा पाप है । जहां प्रेम नहीं वहां नफरत होगी ओर घृणा के साथ ईष्र्या जलन आदि आदि होंगे जो कि धर्म के विरुद्ध है । यह भी सत्य है कि बगैर दया के संत व असुर एक समान हैं उनमें जो अंतर है वह दया प्रेम सौहार्द के बिना नहीं रहता । 
राजा का चरित्र संतों जैसा होना चाहिए तभी वह प्रजा का सही तरीके से रख रखाव व सुख दुख का ख्याल रख सकता है उसका कारण है कि उसकी बाकी इच्छाएं खतम होकर केवल प्रजा के सुख में लग जाती है । अगर सत्ता में काम क्रोध लोभ का समावेश हुआ तो प्रजा दीन हीन हो जाएगी क्यों कि यह दुर्गुण राजा व सत्ता के लिए वर्जित हैं । 
सनातन धर्म  केवल श्री राम व श्री कृष्ण का नाम लेने मात्र से समझा नहीं जा सकता  वह भी अपने सांसारिक भौतिक लाभ के लिए जैसे व्यापारी गलत ढंग से धन कमाने के लिए चोर चोरी के लिए और नेता सत्ता के लिए करे तब । प्रभू इनकी एक बार सुन तो लेगा पर अंत में कर्म अनुसार फल भी देगा और ऐसा देखा भी गया है राम राम कह कर मरा मरा जप लिया गया । प्रभू से पाने की इच्छा के लिए हो या प्रभू द्वारा बनाई गई सृटि की शुभकामनाओं के लिए होना चाहिए , उस आनंद के लिए जो अंर्तआत्मा की चेतना के जागृत होने से मिलती है ।
संस्कारों की तरफदारी करने वाले ही उसके विरुद्ध जाते दिख रहे हैं , सदियों से चला आरहा है कण कण में राम हैं फिर कण को मिटाने को क्यों जुटे 

हो वह चाहें इंसान हो जानवर हो पेड़ पौधे या पत्थर । अगर दूसरी जगह का हो या दूसरे संप्रदाय का हो तो कण उसी सनातन का है जिसके हम हैं। यही नफरत धर्म को न समझने वालों को लज्जित करेगी और इंसान सिफ अपने फायदे के लिए धर्म को सूली पर चढ़ाने से नहीं चूकता है । यह शिकायत अथवा यह दुर्गुण पशु पक्षी व वनस्पति से नहीं होती क्यों कि वे सनातन को मानते हैं और उसका आदर करते हैं । 

भारत को अधर्म पाखंड के दौर से हमें बचा कर चलना होगा क्यों कि इस दौर में झूठ नफरत ईष्र्या की अति हो रही है प्रेम दया विलुप्ति के कगार पर हैं । झूठ बोलने वालों व उनका साथ देने वालों का बोलबाला हो रहा है , जिन्हें इस सबको जांचना परखना है सत्य सामने  लाना है वे स्वयं इस दौर का हिस्सा बने हैं । जब रोकने टोकने वाले ही असत्य के साथी हों तब पूरी आवक ही खराब हो जाती है । 
शर्म की बात है कि हमें हमारे पूर्वज गुलामी से मुक्त कर आजादी देकर गए लेकिन हम आने वाली पीढ़ी को विरासत में क्या देकर जाएंगे ? झूठ अधर्म नफरत की गुलामी वह भी चंद अपने ही लोगों द्वारा जनित । अगर धर्म को सुरक्षित रखना है तब कर्म सम्हालने होंगे जो असत्य के साथ हैं उन्हें सुकर्म का साथी बनाना होगा जगाना होगा गलत राह पर चलतों को चाहें वे हमारे समाज का कोई भी अंग हो हिस्सा हो । 

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